Yin-Yang Qi

हर लफ्ज़ के मायने मोहब्बत और
हर जंग का मक़सद जीत नहीं होता।

चाँद भी आता है ज़मीं पर
मगर कभी - कभी ।

अगर क़यामत तुम जैसी है
तो आज ही हो जाए ।

ये शायरी भी तेरी वफ़ा सी है
कभी बे-इन्तेहाँ
तो कभी बे-नियाज़ ।

सब आज ही बयां करोगे
कुछ तो अगली मुलाक़ात के लिए रख लो ।

सब आज ही बयां करने दो
अगली मुलाक़ात से पहले क़यामत ना हो ।

अलविदा, अब चलता हूँ
जो था सब कह दिया ।

वो चले जाते हैं अक्सर
बस कुछ देर ठहर कर ।

पत्तों की रौनक ही
पेड़ों की दास्ताँ है
ठूंठ तो बस
दर्द बयां करते हैं ।

फ़िज़ा सफ़ेद चादर ओढ़ ले
तो रुत सर्द जान पड़ती है
गुलिस्तां सजाने की चाहत हो
तो बहारों सा मिजाज़ रखिये ।

तनहाई में रहने का सबब पूछते हैं
वो जो ज़माने भर का ग़म दे गए ।

अंगारों को छूने की चाहत तो है
मगर हिम्मत नहीं ।

मुददत हुई या सदियाँ
तेरे इंतज़ार ने ये भी भुला दिया ।

जाने कब से हैं सुलग रहे
चंद बूंदों की चाहत में ।

उफ़ान और तूफ़ान
हदों के मोहताज़ नहीं ।

गुस्ताख़ी हमसे हुई है
तोहमत शराब को ना दे कोई ।

ज़लज़ले मुक़र्रर होंगे
तेरी तहरीर पर ।

समंदर सीने में है
फासले से देखिये
यूँ बेपरवाह कभी हम भी थे
एक लहर के आते ही शिकार हो गए ।

मैं तेरे ख़िलाफ़ हूँ क्यूंकि
तू मेरे ख़िलाफ़ है ।

ये ज़िन्दगी फ़क़त तेरे नाम की बरक़त से काबिज़ है ।

सहर तूने लिखवा दिया सूरज
अब ज़माना पढ़ रहा है ।

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