60हुई शाम और हम आफ़ताब तलाशने चले
दिन की रौशनी में तो वो सबको दिखता है ..
Urdu |
30Bichar kar khat bhi na likha udaas yaaron ne
kabhi kabhi ki adhoori mulaqaat se bhi gaye..
Urdu |
00Saleeqa hi nahi shaayed usey mehsoos karne ka
jo kehta hai Khuda hai to nazar aana zaroori hai..
Urdu |
21Yehi mizaaj hai apna kisi ka dil na dukhe
judaaiyon ko bhi chaaha hai qurbaton ki tarha..
Urdu |
10Ab ki bar milenge to khoob rulaayenge tumhe,
suna hai tumhe rone mein lipat jane ki aadat hai..
Urdu |
3211Kafan na dalo mere chehre pe
mujhe aadat hai muskurane ki
na dafnaao meri laash ko
mujhe ab bhi umeed hai uske aane ki..
Urdu |
00कब की पत्थर हो चुकी थीं, मुंतज़िर आँखें मगर
छू के जब देखा तो मेरे हाथ गीले हो गए ..
- शाहिद कबीर
Hindi |
31Jo ek lafz ki khushboo na rakh saka mehfooz
main uss ke hath main saari kitaab kya deta..
Urdu |
01तुम्हारी बज़म के आगे भी एक दुनिया है,
हुज़ूर बड़ा ज़ुल्म है ये बेखबरी.
Beyond your immediate circle
there is a world outside too,
Your ignorance / indifference is a big crime.
Hindi |
20कुछ इसलिए भी तुमसे मोहब्बत है 'फ़रज़'
मेरा तो कोई नही तेरा तो कोई हो
- अहमद फ़रज़
Hindi |
61उठ उठ के मस्जिदों से नमाज़ी चले गए,
दहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया..
- निदा फाजली
Hindi |
20मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं
कहानी का ये हिस्सा आजतक सब से छुपाया है
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं
नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं
अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं
किसी की आरज़ू के पाँवों में ज़ंजीर डाली थी
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं
पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं
जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं
यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं
हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं
हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं
सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं
हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं
गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं
हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं ..
- मुनव्वर राना
Urdu |
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